Rani Avanti Bai Lodhi Jeevani


Rani Avanti Bai Lodhi Jeevani

रानी अवंतीबाई लोधी रानी अवन्तीबाई लोधीभारत के प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन के महान नेतृत्वकर्ताआंे में रानी अवन्तीबाई लोधी एकमहत्वपूर्ण उपस्थिति हैं। उनका जन्म मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के एक गाँव मनकेहणी में 1़6 अगस्त 1831को हुआ था। इनके पिता राव जुझार सिंह जमींदार थे। माँ कृष्णा बाई की ये लाड़ली पुत्री थीं। अवन्तीबाईबाल्यकाल से ही वीरता, साहस व पराक्रम के गुणों से ओतप्रोत थीं। बचपन में ही इन्होंने तलवारबाजी वघुड़सवारी में महारत हासिल कर ली थी। इनका विवाह विक्रमादित्य सिंह से हुआ जो कि रामगढ़ रियासतके राजा लक्ष्मण सिंह के सुपुत्र थे। लक्ष्मण सिंह के देहावसान के पश्चात विक्रमादित्य सिंह राजा बने। पतिकी अस्वस्थता के कारण राज्य संचालन की बागडोर राजकार्य में निपुण रानी अवन्तीबाई लोधी ने सँभाली।इनके दो पुत्र हुए अमान सिंह और शेरसिंह। गवर्नर जनरल डलहौजी की ‘हड़प नीति’ ने रामगढ़ रियासत को भी प्रभावित करना चाहा।अस्वस्थ्य विक्रमादित्य सिंह को अयोग्य व रानी के दोनों पुत्रों को नाबालिग घोषित कर रामगढ़ राज्य पर‘कोर्ट आॅफ वाडर््स’ की कार्रावाई कर दी गई। इसके अन्तगर्त ‘रामगढ़ राज्य’ को ब्रिटिश अधिकार मं े लेकरसंचालन हेतु अधिकारी नियुक्त किए गए। अंगे्रजो की इस ‘हड़प नीति’ का कुछ राजे-रजवाड़ांे ने विरोधकिया। इस क्रम में रानी अवन्तीबाई का विरोध निर्णायक रूप से चरितार्थ हुआ। उन्होंने कोर्ट आॅफ वाड्र्सके तहत नियुक्त अधिकारियों को रामगढ़ से बाहर निकाल दिया तथा रामगढ़ का शासन स्वयं संचालितकिया। रानी ने अँग्रेजों के कर संबंधी निर्देशों का पालन नहीं करने का किसानों को आदेश दिया। इसनिर्णय से रानी अवन्तीबाई की लोकप्रियता क्षेत्र में बढ़ती चली गई। प्रथम स्वाधीनता संग्राम प्रारंभ होने पर रानी अवन्तीबाई ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संगठितहोकर अँग्रेजों से मुक्ति की पहल का उद्घोष किया। इस हेतु उन्होंने राजाओं, जमींदारों, मालगुजारों कोएक पत्र और दो काली चूड़ियों की एक पुड़िया वितरित की। पत्र में रानी का सन्देश था ‘‘अँग्रेजों से संघर्षके लिए तैयार रहो या चूिड़याँ पहनकर घर बैठो।’’ इस तरह रानी न े व्यापक समर्थन प्राप्त किया तथासंगठित होकर अँगेज्र ांे से संघर्ष किया। 23 नवम्बर 1857 को खैरी के प्रसिद्ध युद्ध मंे रानी अवन्तीबाई वउनकी संगठित सेना ने मंडला के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर वाडिंग्टन की फौज को परास्त कर अपनीनेतृत्व क्षमता और पराक्रम को प्रमाणित किया। पराजय का प्रतिशोध लेने व रामगढ़ पर आधिपत्य स्थापित करने के मंसूबों के साथ अँग्रेजनिरन्तर प्रयासरत रहे लेि कन सीमित सैन्य शक्ति मंे भी रानी का मनोबल शौर्य व पराक्रम से ओतप्रोत रहा।मार्च 1858 में अँग्रेज सेना ने रानी व उनके सैन्य दल पर आक्रमण किया। दोनों पक्षों के बीच हुए घमासानयुद्ध में रानी अवन्तीबाई ने शौर्यपूर्वक संघर्ष करते हुए, स्वयं को अँग्रेजों से घिरता हुआ देख, ‘बैरी के हाथअंग न छुऐ जाने’ के अपने संकल्प का स्मरण कर, अपनी तलवार से आत्मबलिदान कर लिया। युद्ध भूमि मेंऐसे अन्त से जहाँ रानी ने स्वाभिमान, साहस, वीरता को चरितार्थ किया वहीं स्वतंत्रता तथा मातृभूमि प्रेम कासंदेश भी दिया। ‘ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को मैंने ही विद्रोह के लिए भड़काया, उकसाया था, प्रजा बिलकुलनिर्दोष है’ मृत्यपू ूर्व दिये गये रानी के इस बयान ने हज़ारांे लोगों को फाँसी व अँगे्रजांे की क्रूरता से बचालिया। रानी अवन्तीबाई लोधी का पराक्रम, मातृभूमि प्रेम, नेतृत्व क्षमता, प्रजावत्सल नज़रिया,स्वाभिमान तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के संकल्प की निष्ठा सदैव अमर हैं।